Paap Kya Hai- Punya Kya Hai- Paap Aur Punya Me Antar


पाप क्या है ?

जैसा की मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया था कि बुद्धि को कैसे बढ़ाये  और आज मैं आपको बताऊंगा कि पाप और पुण्य क्या है और इनमे क्या अंतर है।

पाप की परिभाषा है ऐसा काम करना जिससे लोगों को और स्वयं को भी दुःख होता हो।

* पाप कितने प्रकार से किया जा सकता है ?
 तो पाप 3 प्रकार से किया जा सकता है।
1 . मन से ,2. वचन से ,3. कर्म से।

paap punya
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1 :- मन से पाप करना :- मन से जो लोग पाप करते हैं ,तो यह पाप सबसे बड़ी पाप मानी जाती है। लोग जो मन से दूसरों को  बद्दुआ देते हैं :- जैसे तुम्हारा सत्यानाश हो ,तुम बर्बाद हो जाव इत्यादि।

तो जो व्यक्ति इस तरह का भाव अपने अंदर रखता है ,वह दुनिया का सबसे बड़ा पापी है। आप सोच रहे होंगे
कैसे :- तो जो लोग दूसरों के प्रति ऐसी विचार रखते हैं ,तो उनका चरित्र भी वैसा ही बन जाता है। ऐसे लोग अंदर ही अंदर जलते हैं ,और एक ना एक दिन उनको अपने पाप का फल मिल जाता है।

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2 :- वचन से पाप करना :- इसका अर्थ है ,किसी को अपने बोली के द्वारा दुःख देना। जैसे किसी को गाली दे दिया ,झूठ बोल दिया ,मज़ाक उड़ाना ,बेइज्जत करना इत्यादि।

3 ;- कर्म से पाप करना :- इसका अर्थ है ,ऐसे -ऐसे काम करना जिससे लोगों को हानि होती हो ,दुःख पहुँचता हो। जैसे किसी की हत्या कर देना ,चोरी करना ,लूटमार करना ,बलात्कार करना इत्यादि।


* और जब आप इन तीनो पापों को गौर से समझेंगे तो एक बात आपको और पता चलेगी कि ये 3 पाप आपस में जुड़े हुए हैं।
जैसे :- पहले लोग मन से पाप को जन्म देते हैं ,जिसके प्रति वह पाप करना चाहता है उसके प्रति ख़राब सोचते  है। फिर बोली से उसे बुरा -भला कहते  है और अंत में वह कर्मो के द्वारा पाप कर्म कर ही देता है।

इसीलिए मैंने कहा था ,सबसे बड़ा पाप है ,मन का पाप क्योंकि मन से ही पापों का जन्म होता है। 
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पुण्य क्या है ?
ऐसा कर्म जिससे लोगों को सुख मिलता हो और आपको भी  सुख मिलता हो ,तो वह कर्म पुण्य कर्म है।

* जैसे पाप 3 प्रकार के हैं वैसे पुण्य भी तीन प्रकार के होते हैं। मन ,वचन और कर्म।

1. मन से पुण्य करना :-  दूसरों को दुआ देना , और दूसरों से दुआ लेना यह है मन का पुण्य। यानि मन से सभी के प्रति दुआ ही निकले। जैसे -सबका कल्याण हो ,दुसमन को भी दुआ देना ,इत्यादि।

2. वचन से पुण्य करना :- सबके प्रति एक जैसी बोली बोलना। ना बोली में कठोरता हो और ना तेज़। कम बोलना ,धीरे बोलना ,मीठा बोलना यह पुण्य कर्म करने वालों की निशानी है। क्योंकि बोली दुनिया का सबसे बड़ा हथियार है ,आप इस हथियार से किसी को भी जीत सकते हैं।



3. कर्म से पुण्य करना :- पुण्य कर्म करने वाला व्यक्ति हमेशा सच्चा ही बोलेगा ,और ईमानदारी से अपना कार्य करेगा। उसके लिए पैसा नहीं ईमान बड़ा होगा। वह जो भी कार्य करेगा ,उससे लोगों की भलाई जरूर होगी।

* कोई भी तरह का पुण्य कर्म हो ,मन से ,वचन से ,या कर्म से। यदि कोई एक भी पुण्य कर्म करता है तो उसमे तीनो की शक्ति आ जाती है। क्यूंकि तीनो आपस में जुड़े हुए हैं।

पाप और पुण्य में अंतर 

पाप और पुण्य में बोहोत बड़ा अंतर है ,पाप पश्चिम है तो पुण्य पूरब ,पाप आकाश है तो पुण्य पृथ्वी।

पाप लोगों को ख़राब करती है ,जिससे दुनिया भी ख़राब बनती है।
वहीँ पुण्य लोगों को अच्छा बनाती है ,जिससे दुनिया भी अच्छी रहती है और प्रकृति भी।

* आज 90 % लोग पाप कर रहे हैं। सभी लोग भ्रस्ट हो गए हैं। चाहे पुलिस हो या जज हो ,सब पैसे के आगे सर झुकाये हुए हैं। लोगों ने अपने को मार दिया है, और मरे -मरे जी रहे हैं। ये भी कोई जीना है। जिधर देखो उधर बुराई की परछाई दिखाई देती है। दिन में भी रात लगती है।

पाप और पुण्य यह आधार है लोगों के जीने के कोई पाप पसंद करता है तो कोई पुण्य , कोई पाप का साथ देता है तो कोई पुण्य का।

पाप के प्रकार 

यूँ तो पाप के कई प्रकार है , जैसा की मैंने बताया की मुख्या 3 प्रकार के पाप गाये जाते है, जो है मन ,वचन ,और कर्म।
और इन्ही तीनो के आधार पर लोग पाप करते है और उनका सजा बाद में भोगते है।

पाप की सजा 

तो पाप के कई प्रकार है लेकिन जो सबसे ख़राब पाप है उसका नाम है जिव हत्या।
जिसके लिए कहा गया है -जिव हत्या महा पाप है। सब पापों में भी जिव हत्या सबसे बड़ा पाप है।
और इस पाप की सजा भी सबसे खतरनाक बताई गयी है , कि जैसे किसी जीभ को मारने पर उसको जितनी तकलीफ होती है वही तकलीफ वह प्राणी महसूस करता है जिसने उस जीभ को मारा है।

लेकिन वह उस पाप का फल कब भोगता है इसकी कोई तिथि और तारिक नहीं बताया गया है, जब भी वह पाप का फल भोगेगा तब उसे एहसास हो जायेगा , कि आज मुझे जो दुःख   हो रहा है वह मेरे ही पुराने पापों का परिणाम है।

यानि आप जैसे पाप करेंगे तो आपको वैसे ही सजा मिलेगा।

पाप की सजा कौन देता है ?

ऐसा लोग मानते है कि पाप की सजा भगवन देते है लेकिन भगवन यह बताते है कि ना मैं किसी को पाप देता हूँ और ना ही किसी को पुण्य देता हूँ (भगवत गीता ) जो जैसा कर्म करेगा उसको वैसा ही फल स्वयं मिलता है।

जैसे ये प्रकृति स्वयं चलती है , आप जैसा प्रकृति को करेंगे तो प्रकृति भी आपको वैसा ही देगी। उसी तरह पाप और पुण्य भी है ,आप जैसा करेंगे उसके अनुसार ही आपके पाप और पुण्य बनेंगे।


सच कहा था रामचंद्र जी ने :-
* रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आएगा। हंस चुभेगा दाना तिनका ,कौवा मोती खायेगा। 
यानि जो अच्छे लोग हैं ,उनको दाना नसीब होगी ,और जो कौवे जैसे लोग हैं ,वह मोती खाएंगे ,यानि धन -दौलत उनके पास होगी ,कौवे की तरह काले  कमाई की।


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1 टिप्पणी

  1. इस जीव जगत में कोई बिना कर्म किए तो रह ही नहीं सकता फिर चाहे वो जाग्रित अवस्था हो या सुप्त अवस्था, हर पल हर हालत में हम कर्म करते हैं, तो क्या सुप्त अवस्था मे किया गया कर्म फल लगता है

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