नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है anekroop में . आज का यह पोस्ट Mahavatar Narsimha Movie Ki Kahani के ऊपर है . यदि आप movie की कहानी को पढना चाहते हैं तो इस पोस्ट द्वारा पढ़ पाएंगे . इस पोस्ट में movie की कहानी को संक्षिप्त में बताया गया है .
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mahavatar narsimha movie story |
महावतार नरसिंह – मूवी की कहानी
भारत की प्राचीन धरती पर अनेक कथाएँ और अवतार जन्म लेते हैं। उन्हीं में से एक है भगवान विष्णु का चौथा अवतार – नरसिंह। यह कथा सिर्फ़ प्रहलाद और हिरण्यकशिपु की नहीं, बल्कि सत्य और असत्य, आस्था और अहंकार, धर्म और अधर्म के बीच हुए एक महान संघर्ष की है।
पहला चरण – असुरों का साम्राज्य
कहानी की शुरुआत होती है असुरराज हिरण्यकशिपु से। वह महाप्रतापी राजा था। उसके अपने भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु भगवान विष्णु के हाथों होने के बाद उसके हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला जल उठी थी। वह तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करता है और वरदान माँगता है कि —
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मुझे न दिन में मृत्यु हो, न रात में।
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न घर के भीतर, न बाहर।
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न धरती पर, न आकाश में।
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न किसी मनुष्य से, न किसी पशु से।
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न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से।
ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। हिरण्यकशिपु अहंकारी हो उठा। उसने घोषणा कर दी—“इस सृष्टि में अब सिर्फ़ मैं ही ईश्वर हूँ।”
उसके राज्य में सबको आदेश दिया गया कि कोई विष्णु का नाम न ले, सिर्फ़ हिरण्यकशिपु की पूजा करे। भयभीत प्रजा उसकी आज्ञा का पालन करने लगी।
दूसरा चरण – प्रह्लाद का जन्म
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद जन्म लेता है। परंतु यह बालक जन्म से ही विष्णुभक्त होता है। जब गुरु शुक्राचार्य उसे शिक्षा देने लगते हैं, तो वह बार-बार “नारायण-नारायण” का नाम जपता है।
हिरण्यकशिपु को जब यह ज्ञात होता है, तो वह क्रोधित हो उठता है। वह कहता है—
“मेरे पुत्र! मैं ही भगवान हूँ। विष्णु नाम का कोई देवता नहीं। उसकी पूजा मत करो।”
परंतु प्रह्लाद दृढ़ता से उत्तर देता है—
“पिता! भगवान विष्णु ही सृष्टि के पालनहार हैं। मैं उन्हीं की भक्ति करूँगा।”
तीसरा चरण – अत्याचारों की श्रृंखला
हिरण्यकशिपु अपने ही पुत्र को विष्णु का भक्त देख अपमानित महसूस करता है। वह प्रह्लाद को सज़ा देने का निर्णय लेता है।
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उसे हाथियों के पैरों तले कुचलवाने की कोशिश की जाती है, परंतु हाथी उसे छू भी नहीं पाते।
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उसे ज़हर दिया जाता है, परंतु विष अमृत बन जाता है।
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उसे आग में जलाने की योजना बनाई जाती है। उसकी बहन होलिका, ( जिसके पास अग्नि से न जलने का वरदान था ), प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है। परंतु परिणाम उल्टा होता है – होलिका जलकर भस्म हो जाती है और प्रह्लाद सुरक्षित बच जाता है।
इन घटनाओं से प्रह्लाद की भक्ति और अधिक प्रबल होती जाती है।
चौथा चरण – निर्णायक टकराव
एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा—
“तुम कहते हो कि विष्णु सर्वत्र हैं। क्या वे इस स्तंभ में भी हैं?”
प्रह्लाद ने शांत भाव से कहा—
“हाँ, पिताश्री। वे हर कण में विद्यमान हैं।”
हिरण्यकशिपु क्रोध से भरकर अपने गदा से स्तंभ पर प्रहार करता है। और तभी स्तंभ से एक भयानक गर्जना होती है।
पाँचवाँ चरण – नरसिंह का अवतरण
स्तंभ चकनाचूर हो जाता है और उसमें से प्रकट होते हैं महावतार नरसिंह—
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आधा सिंह, आधा मनुष्य।
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अग्नि के समान दहकते नेत्र।
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नखों में बिजली की चमक।
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शरीर से निकलती दिव्य आभा।
हिरण्यकशिपु का अहंकार उस क्षण डगमगा जाता है। उसे समझ आता है कि यह वही शक्ति है जिसे वह नकारता रहा।
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narsimha aur prahlad yuddha |
छठा चरण – धर्म और अधर्म का युद्ध
नरसिंह और हिरण्यकशिपु के बीच घमासान युद्ध होता है। हिरण्यकशिपु अपने शस्त्रों से वार करता है, परंतु नरसिंह उसके हर वार को निष्फल कर देते हैं।
अंततः संध्या का समय आता है—न दिन, न रात। नरसिंह उसे महल के दरवाज़े की चौखट पर ले जाकर उठा लेते हैं—न घर के भीतर, न बाहर। अपने नखों (नाख़ून ) से उसका वध कर देते हैं—न अस्त्र, न शस्त्र। अपने सिंह रूप से उसे मारते हैं—न मनुष्य, न पशु। और उसकी देह को अपनी जंघा पर रखकर चीर डालते हैं—न धरती, न आकाश।
इस प्रकार ब्रह्मा का दिया हुआ वरदान भी सत्य रहता है और हिरण्यकशिपु का अंत भी हो जाता है।
सातवाँ चरण – प्रह्लाद का राज्याभिषेक
हिरण्यकशिपु के मरने के बाद भी नरसिंह का क्रोध शांत नहीं होता। समस्त ब्रह्मांड भयभीत हो उठता है। देवता, ऋषि, यहाँ तक कि ब्रह्मा और शिव भी उन्हें शांत नहीं कर पाते।
अंततः प्रह्लाद आगे आता है। वह अपने छोटे-से बाल हाथ जोड़कर प्रार्थना करता है—
“हे प्रभु! कृपा करके शांत हो जाइए। यह संसार आपके बिना संतुलन नहीं पा सकेगा।”
नरसिंह की आँखों से करुणा प्रकट होती है। उनका क्रोध शांत हो जाता है। वे प्रह्लाद को आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं—
“तुम धर्म और भक्ति के प्रतीक बनोगे। तुम्हारा नाम युगों-युगों तक लिया जाएगा।”
इसके बाद प्रह्लाद को राज्य सौंप दिया जाता है। उसके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध होती है।
आठवाँ चरण – संदेश
फिल्म के अंतिम दृश्य में एक वृद्ध प्रह्लाद अपने पौत्र को कहानी सुनाते हैं। वह कहते हैं—
“बेटा! अहंकार कितना भी बड़ा क्यों न हो, सत्य और भक्ति के आगे उसका अंत निश्चित है। भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इसलिए कभी धर्म का मार्ग मत छोड़ना।”
कैमरा धीरे-धीरे आसमान की ओर उठता है, जहाँ बादलों में नरसिंह का दिव्य रूप दिखाई देता है।
फिल्म का सार
“महावतार नरसिंह” सिर्फ़ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि यह हर युग के लिए एक संदेश है—
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जो अहंकार करेगा, उसका अंत निश्चित है।
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जो सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलेगा, उसकी रक्षा स्वयं भगवान करेंगे।
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भगवान हर रूप में, हर जगह, हर समय उपस्थित हैं।
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धन्यवाद .
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