3 लोक कौन से हैं ? मनुष्य ,सुक्ष्म, ब्रह्म लोक।


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे 3 लोकों के बारे में। यही कि 3 लोक कौन से है ? वहाँ पर कौन रहते है ? और उनतक कैसे पहुंचा जाये। 
तो इस post की सुरुवात करते है और जानते है मनुष्य लोक ,सुक्ष्म लोक और ब्रह्मलोक के बारे में। 


3 lok kaun se hai
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1. साकार मनुष्य लोक। स्थूलवतन। 

नाम से ही पता चल जाता है कि जहां मनुष्य आत्माये रहते है तो उस स्थान को मनुष्य लोक कहते है। यहां पर मनुष्य के साथ -साथ जानवर , पशु -पक्षी इत्यादि जीव रहते है। जिसे पृथ्वीलोक भी कहते है। 
इस लोक में जीव 5 तत्वों से बनते है - जिसे - जल ,वायु ,अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश कहते है। जिसे हम प्रकृति भी कहते हैं। यहां के लोग जन्म -मरण के चक्र में आते है। 
यहां सुख -दुःख, रात -दिन ,जन्म -मृत्यु से जीवन चलता है। 

ये सृष्टि आकाश तत्व के अंश मात्र में है ( आकाश इतना बड़ा है कि उसके सामने अंश के बराबर है ) . इसे सामने त्रिलोक के चित्र में उलटे वृक्ष के रूप में दिखाया गया है। क्योंकि इसके बीजरूप परमपिता परमात्मा ऊपर रहते हैं। 

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2. सुक्ष्म लोक - देव लोक। सुक्ष्मवतन 

यह लोक , मनुष्य लोक के तरागमन के पार ( solar system के पार ) जहां प्रकाश ही प्रकाश है। 
उस लोक में ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर की अलग -अलग पूरियां है। इन देवताओं के शरीर हड्डी -मांसादि से नहीं बल्कि प्रकाश के है। जिसे दिव्य सुक्ष्म शरीर भी कहते है। यहां दुःख अथवा अशांति नहीं होती। 
इन्हे दिव्य (ज्ञान) नेत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है। 
यहां संकल्प ,क्रियाये ,बात -चित होती है लेकिन आवाज नहीं होती। 

यहां सभी बातें बेहद में - यानि आत्मा की stage के बारे में कहा गया है। 

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3. ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम या मूलवतन। 

इन लोकों के भी पार एक और लोक है जिसे - ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम ,मूलवतन,शान्तिधान ,निर्वाणधाम ,शिवलोक आदि नामों से जाना जाता है। इसमें सुनहरे लाल रंग का प्रकाश फैला हुवा है जिसे ही ब्रह्म तत्व , छठा तत्व और महातत्व कहा जाता है। इसमें आत्माएं मुक्ति की अवस्था में रहती है। यहां हरेक धर्म की आत्माओं का अलग -अलग संस्थान (sections ) है। 

यह सभी आत्माओं का घर है ,यहीं से सभी आत्माएं पृथ्वी पर जाती है अपना part बजाने। यहां आत्माओं के साथ -साथ आत्माओं का बाप , शिव भी रहते है। जिसे अल्लाह , Godfather कहते है।
भगवान का घर यही है , और संगमयुग आने पर वह पृथ्वी पर जाते है और सभी आत्माओं को पतित से पावन बनाकर वापस अपने घर ले आते है। (जो समय अभी चल रहा है ) 

और जब सभी आत्माओं का पार्ट ख़त्म हो जाता है (महाविनाश ) के बाद फिर सभी आत्माये वापस अपने घर परमधान चली आती है। और फिर से यह चक्र घुमता है। 

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manushya lok ,shuksham lok, brahmalok
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3 लोकों को विस्तार से समझिये। 

आत्मा इस सृष्टि में कहाँ से आई ? ये किट , पशु -पक्षी ये सब आत्माये हैं। सबके अंदर आत्मा है
गीता में एक श्लोक आया है जिसमे भगवान ने अर्जुन को बताया है- कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ ? "न तद भास्यते सूर्यो न शशांको न पावकः। 
यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम। " (गीता 15 /6 )

अर्थात जहां सूर्य ,चंद्र ,सितारों का प्रकाश नहीं पहुँचता , जहां अग्नि का प्रकाश नहीं पहुँचता ,वह मेरा परे ते परे धाम है, जहां का मैं रहने वाला हूँ।
 यह श्लोक इस बात का प्रमाण है कि भगवान परमधाम के रहने वाले हैं , सर्वव्यापी नहीं है। यहां साबित किया गया है कि 5 तत्वों की दुनिया से परे एक और ऐसा एक छठा तत्व है -ब्रह्मलोक। 

जिसे अंग्रेज कहते है supreme world , मुसलमानो में कहा जाता है "अर्श " - खुदा अर्श में रहता है , फर्स में नहीं। लेकिन अब तो वे भी मानने लगे है कि खुदा जर्रे -जर्रे में है। जैनी लोग उसे 'तुरिया धाम ' मानते है। 

तात्पर्य यह है कि हर धर्म में उस धाम की मान्यता है। हम सभी आत्माये उस परमधाम की रहने वाली है। जहां पर supreme soul शिव भी है। वे जन्म -मरण के चक्र से न्यारे है। बाकि जितनी भी आत्माये है वह जन्म -मरण के चक्र में आ जाती है। 

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परमधाम से सभी आत्माये किस स्थिति से नीचे उतरती है। 

जितना ही इस सृष्टि पर आ करके श्रेष्ठ कर्म करने वाली आत्मा है ,वह उतना ही परे -ते -परे शिव के नजदीक रहने वाली आत्मा होगी और जितने ही निष्कृष्ट कर्म करने वाली , पार्ट बजाने वाली आत्मा है , वह उतना ही  नीचे की ओर रहेगी। उनकी संख्या ज्यास्ती होती है। 

दुस्ट कर्म करने वालों की संख्या ज्यास्ती और श्रेष्ठ कर्म करने वाली देव आत्माओं की संख्या कम ,जो 33 करोड़ कही जाती है। जिनकी संख्या ऊपर की ओर कम होती जाती है वे श्रेष्ठ आत्माएं हैं। 

दुनिया की हर चीज 4 अवस्थाओं से गुजरती है - सतोप्रधान (बचपन ) ,सतोसामान्य (किशोर अवस्था ), रजोप्रधान (जवानी ) और तमोप्रधान (बुढ़ापा ) . 
ब्रह्मलोक से आत्माओं का उतरने का भी यही क्रम है कि जितनी श्रेष्ठ आत्माएं हैं उतना ही श्रेष्ठ युग में उतरती है। 

जो 16 कला सम्पूर्ण आत्माएं हैं वह सतयुग के आदि में उतरती है , जो 14 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे त्रेतायुग के आदि में उतरती है , जो 8 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे द्वापर में उतरती है और कलियुग में कलाहीन सुरु हो जाती है। कलाहीन आत्माएं , जिनका काम औरों को दुःख देना ही है , जिनके लिए गीता में आया है - "मूढ़ा जन्मनि जन्मनि ". (गीता 16 /20 ) श्लोक। 

वे नारकीय योनि में आकर के गिरती हैं। वे नीचतम आत्माएं कलियुग के अंत में आती हैं जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर आती हैं ,जिनको वापस जाने का रास्ता नहीं मिलता , बल्कि यहीं जन्म -मरण के चक्र में आती रहती हैं और शरीर द्वारा सुख भोगते -भोगते तामसी बन जाती हैं। 

इस सृष्टि पर आने के बाद आत्मा वापस जाती है या नहीं ?

बीज है , कई बार बोया जायेगा तो उसकी शक्ति कम हो जाती है। पत्ता छोटा , फल छोटा ,वृक्ष छोटा और आखरीन होते -होते वह फल देना ही बंद कर देता है। तो ऐसे ही आत्माओं का यह हिसाब है कि जब एक बार ऊपर से नीचे आ गई तो वे नीचे ही उतरती जाती है। 

आप इस सृष्टि के 2500 वर्ष पूर्व की history ले लीजिये। दुनिया में सुख -शांति , दुःख और अशांति में बदलती गई है या सुख शांति बढ़ती गयी ? history क्या कहती है ? जैसे -जैसे जनसंख्या बढ़ती गई ,ऊपर से आत्माएं उतरती गयी , तो जनसंख्या के बढ़ने से दुनिया में दुःख और अशांति बढ़नी ही बढ़नी है और वह बढ़ती ही गई। 

एक अति (end, extremity )   होती है कि जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर जाती है। दुनिया में कीट , पशु पक्षी , पतंगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश -विदेश में इतनी कीटनाशक दवाइयां छिडकी जा रही है , तो भी उनकी संख्या में कमी नज़र नहीं आ रही है। 

मक्खी , मछरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आखिर ये आत्माएं आ कहाँ से रही है ? उसका समाधान गीता के अनुसार ही है , लेकिन स्पस्ट किसी ने नहीं किया। अभी यह बात स्पस्ट हो रही है कि ये आत्माएं उस आत्म -लोक से आ रही है और इसी दुनिया में 84 के जन्म -मरण का चक्र काटते हुवे अपना -अपना पार्ट बजाते रहती है। 

तो भाइयों यह थी जानकारी 3 लोकों के बारे में। और इससे सम्बंधित बढ़ती आबादी और आत्मा के घर के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी बेहद पसंद आई होगी। 

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