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Brahmacharya (पवित्रता) Ka Palan Apne Jeevan Me Kaise Kare

Brahmacharya (पवित्रता) Ka Palan Apne Jeevan Me Kaise Kare


 नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन अपने जीवन में करने के बारे में।
जिसमे हम बात करेंगे :-

  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) क्या है ?
  • बुरे विचारों का क्या मतलब है ?
  • ब्रह्मचर्य में अच्छे विचार क्या है ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) काम कैसे करती है ?
  • अपवित्रता से जीवन में क्या नुकसान होता है ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन कैसे करते हैं ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) से जीवन में क्या फायदे होते हैं ?

brahmacharya palan kare
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ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) क्या है ?

ब्रह्मचर्य का मतलब होता है ब्राह्मण जैसा आचरण करना। जैसे ब्राह्मण चरित्र ( संस्कार ) करते हैं वैसे ही चरित्र करना।
वहीँ पवित्रता का मतलब होता है - सभी को आत्मा के रूप में देखना और सभी को आत्मा-आत्मा भाई-भाई समझना।

जैसे - आजकल के लोग पवित्रता का मतलब साफ़-सफाई समझते हैं लेकिन किसकी साफ़-सफाई ? ये नहीं समझ पाते।  तो पहले-पहले सफाई आत्मा में आ रही बुरे विचारों की।  बुरे विचारों की सफाई होते ही आत्मा स्वतः ही पवित्र बन जाएगी और फिर शरीर भी पवित्र बन जायेगा। क्योंकि आत्मा बीज है , और शरीर वृक्ष है। जब बीज सुधरता है तो वृक्ष अपने आप सुधर जाता है।

बुरे विचारों का क्या मतलब है ?

ब्रह्मचर्य का पालन करने के सम्बन्ध में बुरे विचार वो हैं तो आत्मा को शरीर के तरफ आकर्षण करते हैं। शरीर के सुख उन्हें बार-बार याद आते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बुद्धि बार-बार शरीर के इन्द्रियों पर ही चली जाती है। ऐसे लोग दूसरों के शरीर से प्रभावित होते हैं और अपने भी शरीर की इन्द्रियों से प्रभावित होते हैं।

तो ब्रह्मचर्य  के सम्बन्ध में यही बुरे विचार हैं , ऐसे ही बुरे विचारों में फँस कर मनुष्य जानवर के समान बन गया है। ऐसे विचारों में फंसा हुवा मनुष्य कभी भी कोई अच्छा काम नहीं कर सकता। उनकी बुद्धि वहीँ गटर में ही धरी रहती है , इसलिए वे अपनी बुद्धि से अच्छे काम नहीं कर पाते और जानवर की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) में अच्छे विचार क्या हैं ?

ब्रह्मचर्य का पालन करने के सम्बन्ध में अच्छे विचार हैं - 
सबके प्रति आत्मा-आत्मा भाई-भाई की दृष्टि रखने से लोगों का आपस में रूहानी प्यार बढ़ता है। लोगों में विश्वास बढ़ता है , सच्चाई , ईमानदारी जैसे संस्कार उत्पन्न होते हैं। और इस  संसार के सभी लोग एक ही माँ -बाप   के बच्चे हैं ऐसा अनुभव होता है।

ऐसी अनुभूति होने के बाद जब ब्रह्मचर्य की शक्ति बढ़ती है , तो फिर शरीर ,ऊर्जा का भंडार बन जाता है। व्यक्ति से ऐसे-ऐसे काम होते हैं जो दुनिया को बदलने की हिम्मत रखते हैं।

लेकिन ये सभी कुछ होता है अच्छे विचारों से , ऐसे व्यक्ति शरीर से ऊपर उठ कर आत्मा के संस्कारों को देखते हैं ,प्रकृति की सुंदरता को देखते हैं , अपनी चेतना से सारी ज़िन्दगी जीते हैं और अतीन्द्रिय सुख अनुभव करते हैं ,जिसे आत्मा का सुख कहा जाता है।

सभी के प्रति उनके दिलों में शुभ भावना रहती है , ब्रह्मचर्य की power से उनकी आत्मा से रूहानियत की vibration (तरंगे ) निकलती है जो वायुमंडल को सुद्ध बनाती है , और प्रकृति भी ऐसे लोगों को नमस्कार करती है।

तो आप भी , जब किसी से मिले तो उसे आत्मा समझे , और उसके प्रति शुभ भावना रखें फिर देखिये क्या परिवर्तन आता है।

ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) काम कैसे करती है ?

लोग कहते हैं ग्रहों और प्रकृति के अनुसार आत्मा में परिवर्तन होता है ,लेकिन शिवबाबा कहते हैं आत्मा के अनुसार प्रकृति के 5 तत्व भी बदलते हैं। आत्मा सतोप्रधान (पवित्र ) बनती है तो प्रकृति भी पवित्र बनती है। और आत्मा जब अपवित्र बनती है तो प्रकृति भी अपवित्र बनती है।

उदाहरण :- जो जंगलों में जानवर रहते हैं और जो मनुष्यों के साथ जानवर रहते हैं उनमे से बीमार कौन से जानवर ज्यादा होते हैं ?
कहेंगे जो मनुष्यों के साथ जानवर रहते हैं वो ज्यादा बीमार होते हैं। क्योंकि वे जानवर मनुष्यों के वृत्ति के प्रभाव में आ जाते है।
अभी मनुष्य आत्मा ज्यादा विकारी है इसीलिए जानवर भी ऐसे ही हैं और ये प्रकृति भी तमोप्रधान (अपवित्र ) बनते जा रही है।

अब जैसे-जैसे आत्मा पवित्र बनते जाएगी , वैसे-वैसे प्रकृति भी बदलते जाएगी और एक सुनहरा युग फिर से स्थापन होगा।

हरेक आत्मा के अंदर से wave (vibration ) निकलता है जिसका प्रभाव उसके आस-पास में रह रहे लोगों  , जिव -जंतु , पेड़ पौधों इत्यादि में पड़ता है।

तो vibration से सारी दुनिया चलती है। और ये vibration आत्मा अपने संकल्पों (विचारों ) से बनाती हैं।
आत्मा पवित्र संकल्प करती है तो वह पवित्र vibration दुनिया में देती है। और अपवित्र संकल्प करती है तो अपवित्र vibration दुनिया को देती है।

और इस प्रकार ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) की शक्ति काम करती है , दुनिया को बदलने के लिए।

अपवित्रता - विकार में जाने से नुकसान।

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए , विकार के नुकसान को भी समझना बोहोत जरूरी है ,तब ही बुद्धि सही और गलत का निर्णय कर पायेगी। 

  • काम विकार में जाने से आत्मा पतित बनते जाती है , जिससे यह दुनिया भी पतित बन जाती है। 
  • काम विकार में जाने से काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहंकार। सभी विकारों की वृद्धि हो जाती है। मुख भी गन्दा हो जाता है और लोग आपस में ही एक दूसरे को गाली देने लगते हैं। 
  • विकार में जाने से सारा ज्ञान उड़ जाता है , सारा पुरुषार्थ ख़त्म हो जाता है ,सारी की कमाई (आत्मा की ) चौपट हो जाती है। 
  • विकार देह का सुख है और अभी शिवबाबा आत्मा का सुख देने आए हैं। अतीन्द्रिय सुख देने आए हैं। 
  • भ्रस्ट इन्द्रियों का सुख भोगने से दुनिया ओर ही भ्रस्टाचारी बन जाती है। 
  • काम विकार में जाने से ही मनुष्य इतने दुराचारी ,पापी और निर्दयी हो गए हैं। 
  • काम विकार में जाने से शरीर दुर्बल और आँखों की रोशिनी कम होते जाती है। शरीर जल्दी वृद्ध हो जाता है। 
  • यदि हम विकार में जाते हैं तो नई पावन दुनिया स्थापन नहीं कर पाएंगे। 


ब्रह्मचर्य (पवित्रता )  का पालन अपने जीवन में कैसे करें

जीवन में ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन करने का उपाय और उसे सहज धारण करने का उपाय स्वयं शिवबाबा ने बताया है जिसकी जानकारी नीचे दी गई है-

1. { Step -1  सबसे पहले अपने मन में दृढ संकल्प ले कि हमें पवित्रता का पालन करना ही है। चाहे जो हो जाये हम पवित्र बनकर रहेंगे।
 Step -2 अपने को भी आत्मा समझना है ,दूसरों को भी आत्मा समझना है। और इस तरह हम सभी आत्मा-आत्मा ,भाई -भाई हैं। }

2.  ईश्वरीय ज्ञान से हमें पता चलता है कि आत्मा जब अपने घर से आती है तो एकदम Pure (प्योर ) होती है , फिर बाद में जन्म लेते लेते Impure बन जाती है। तो हम आत्मा भी पहले 100 % प्योर थे , और हम ही सतयुग और त्रेतायुग में पवित्र देवतायें थे , और अब जन्म लेते-लेते कलियुग के अंत में भी हमको ब्राह्मण जन्म मिला है इसीलिए हमारे लिए ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन करना आसान है।

3. हम सब एक बाप की संतान रूहानी भाई हैं - यह अलौकिक दृष्टि की स्मृति रहने से देहधारी दृष्टि अर्थात लौकिक दृष्टि जिसके आधार से विकारों की उत्पत्ति होती है वह बीज ही समाप्त हो जाता है। जब बीज समाप्त हो गया तो फिर अनेक प्रकार के विस्तार रूपी वृक्ष विकारों का स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

4. तो हर भाई महावीर है ,हर बहन शक्ति है। महावीर भी राम का है , शक्ति भी शिव की है।  किसी भी शरीरधारी को देख सदा मस्तक के तरफ आत्मा को देखो।  नज़र ही मस्तकमणि पर जानी चाहिए।  तो क्या होगा ? आत्मा-आत्मा को देखते स्वतः ही आत्म अभिमानी बन जायेंगे।

brahmacharya ka palan kaise kare.


5. पावन बनने की विशेषता , विशेष युक्ति क्या बताई ? एक के याद से , एक के संसर्ग से , संपर्क से क्या होगी ? पवित्रता आएगी। और अनेकों के संसर्ग ,संपर्क में आने से क्या हुवा ? आत्मा में अपवित्रता आ गई।

{तो एक शिवबाबा को ही मन बुद्धि से याद करना है। जो सभी आत्माओं का बाप है जिसे लोग शिव ,खुदा ,GOD इत्यादि नामों से जानते हैं , लेकिन पहचान करके याद करना है। }

Note :- तो सभी को आत्मा समझने से और शिवबाबा की याद से जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना आसान हो जायेगा। 
इसके लिए आपको practice करनी होगी ,एक दिन में सभी को आत्मा समझने की practice नहीं हो जाएगी ,इसके लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत है। 

और शिवबाबा/खुदा /GOD  को कैसे याद करना है ?  ये आप internet में search करके जान सकते हैं। 

और इस तरह बताये गए मुख्य 5 बातों को अपने जीवन में धारण करने से आप ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन आसानी से कर पाएंगे।


 पवित्रता (ब्रह्मचर्य ) जीवन में धारण करने से फायदे/शक्ति । 

  • जहां पवित्रता होती है वहाँ सुख और शांति स्वतः ही आ जाती है। 
  • पवित्रता सभी गुणों की जननी है। 
  • जो पवित्र रहते हैं वो शिवबाबा की बोहोत मदद करते हैं ,क्योंकि वो पावन दुनिया बनाने में मदद करते हैं। 
  • पवित्रता के Vibration से दुनिया भी पवित्र बनती है। 
  • पवित्रता से शरीर के सभी बीमारी ख़त्म हो जाते हैं। आँखों में तेज़ आ जाती है। 
  • पवित्रता ही लोगों को अपने तरफ आकर्षित करती है। 
  • पवित्रता से आत्मा की चढ़ती कला होती है , आत्मा की भी बीमारी ख़त्म हो जाती है। 
  • पवित्रता से ही संगठन बनता है। 
  • पवित्रता से आपके संकल्प पुरे होने लगते हैं। 
  • जिसमे जितनी ज्यादा पवित्रता होगी वो उतना बड़ा राजा बनेगा। 
  • पवित्रता से बुद्धि का विकाश होता है। 
  • पवित्रता ऐसा खजाना है जिसके आगे सभी खजाने फ़िके पड़ जाते हैं। 
  • पवित्रता से दुनिया के सभी कार्य होते हैं। 
तो दोस्तों यह थी जानकारी ब्रह्मचर्य का पालन करने की और उसे जीवन में धारण करने की। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। 

और इस post को अपने facebook ,watsapp में share जरूर करें ताकी वे भी इसका महत्व जान सके। 

अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 
Blogger Me Leverage Browser Caching Favicon Thik Kare

Blogger Me Leverage Browser Caching Favicon Thik Kare


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे  Blogger में Leverage Browser Caching Fevicon के बारे में और उसे ठीक करने  के बारे में।

जैसे :-

Leverage Browser Caching Favicon क्या होता है ?
Leverage Browser Caching Favicon से blog का speed कैसे कम हो जाता है।
Favicon क्या होता है ? इसे कैसे change करते हैं ?
Leverage Browser Caching Favicon ठीक करने के लिए Code .

leverage browser caching
leverage browser caching 
.

Leverage Browser Caching Favicon क्या होता है ?

 जब आप अपने blog speed को google speed insight  या GT Matrix में check करते हैं तब आपको ये Leverage Browser Caching Favicon show होता है। यह बताता है कि आपके blog के favicon की वजह से  browser में आपके blog  page का speed कम हो रहा है।

इसका परिणाम यह होता है कि लोग आपके blog से चले जाते हैं और फिर आपके blog का bounce rate बढ़ जाता है।

Leverage Browser Caching Favicon से blog का speed कैसे कम हो जाता है।

इसको समझने से पहले आप यह समझिये कि  Favicon क्या  होता है :-
Favicon :- यह एक logo है , जैसे हरेक कंपनी का अपना-अपना logo होता है वैसे ही हरेक website का अपना-अपना logo होता है , जिसे आप अपने blog के अनुसार या अपने पसंद के अनुसार रख सकते हैं। 

 जब आप blogger में blog बनाते हैं तो उसमे पहले से ही dafault logo रहता है जिसे आपको change करना होता है। यह लोगो कुछ इस प्रकार होता है , और इसे आप ऐसे change कर सकते हैं :-

blogger fevicon.

Favicon से blog speed कैसे कम हो जाती है ?

जब आप favicon /logo का size अधिक ले लेते हैं , तो फिर ये leverage browser catching show होता है , इससे fevicon को  load होने में बोहोत समय  लगता है। 

Leverage Browser Caching Favicon  कैसे ठीक करे ?

इसको आप 2 तरीकों से ठीक कर सकते हैं :- 

1 . Favicon का size बोहोत कम करके। 
2.  Code Add करके , और cache time को बढ़ा करके। 

मैं तो आपको सलाह दूंगा कि आप photoshop से अपने favicon /logo का size bohot कम कर लें , यदि तब भी ये issue आती है तब इस code को अपने blog में add करें। 

Leverage Browser Caching Favicon ठीक करने के लिए Code 

सबसे पहले आप Blogger में जाये फिर >> Theme में जाये फिर >>Edit HTML में जाये। 

अब आपको एक code find करना है जो है :-

<link href='/favicon.ico' rel='icon' type='image/x-icon'/>

अब इस code को delete करके आपको नीचे दिए code को add करना है 

<link href='https://cdn.statically.io/favicons/www.domain-name.com' rel='icon' type='image/x-icon'/>

जहां domain-name लिखा है वहाँ आपको अपने website का url डालना है। 


या 

यदि आप cache time को बढ़ाना चाहते हैं 1 दिन से बदलकर 1 साल का करना चाहते हैं तो फिर ये code add करें। 
cache time बढ़ाने से loading speed बढ़ती है। 
आप GTmatrix में जाके इसके बारे में पढ़ सकते हैं। 

<link href='https://cdn.statically.io/favicons/www.domain-name.com?cache=31556952' rel='icon' type='image/x-icon'/>

फिर बस आपका Leverage browser caching favicon ठीक हो जायेगा और आपका page जल्दी load होने लगेगा। 

Video For -Leverage browser caching favicon


तो दोस्तों ये जानकारी आपको कैसी लगी हमें comment करके जरूर बताये। इससे सम्बंधित कोई सवाल है तो वो भी बताये। 

और इस post को अपने दोस्तों तक जरूर share करें। 




धन्यवाद। 
Geeta Ka Bhagwan Kaun Hai

Geeta Ka Bhagwan Kaun Hai

नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे गीता के भगवान के बारे में।

 गीता क्या है ? संक्षिप्त परिचय
श्री कृष्ण गीता के भगवान है या नहीं ?
गीता का भगवान  साकार है या निराकार ?
गीता के श्लोक क्या कहते हैं गीता के भगवान के बारे में ?

ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के अनुसार :-
गीता क्या है ?
कौन है गीता का भगवान ?
गीता का भगवान कब और कैसे साबित होगा ?

और भी अनेक जानकारी गीता के भगवान के बारे में।
geeta ka bhagwan kaun hai
geeta ka bhagwan
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गीता क्या है ? संक्षिप्त परिचय

दुनियावी लोगों के अनुसार गीता यानि भगवतगीता एक धर्मशास्त्र है ,जो वेद व्यास के द्वारा लिखी गई है। 
जिसमे वर्तमान समय में 18 अध्याय जिसमे 700 श्लोक हैं। 

गीत शब्द से बनता है गीता , इसीलिए गीता के श्लोक गीत की तरह सुनने में लगते हैं। 
लोग सिर्फ इसी गीता के बारे में जानते हैं और इसी के श्लोकों के अर्थ को अपने -अपने तरीकों से समझते हैं। 

आज सबसे पहले मैं इसी गीता के भगवान के बारे में बताने वाला हूँ , जिससे आजतक आप अनजान थे। 

महर्षि वेद व्यास जी द्वापरयुग में जन्म लिए , ये सभी जानते हैं और उन्होंने 4 वेद और 24 पुराण सहित अन्य कई शास्त्र लिखे हैं उनमें से ही भगवतगीता एक धर्मशास्त्र है। 
जैसे - मुसलमानों का कुरान , और क्रिस्चियन का बाईबल है वैसे ही सनातन धर्म वालों का भगवतगीता , उनका धर्म शास्त्र है। जिसको स्वयं भगवान ने आकर सुनाया, ऐसी मान्यता है। 

और धर्मों में धर्मपिताओं के ज्ञान के अनुसार उनके धर्म पुस्तक बनाए गए है लेकिन सनातन धर्म में स्वयं भगवान के ज्ञान के अनुसार धर्म पुस्तक बनाई गई है ऐसी मान्यता है। 

लेकिन समय के बीतने पर सनातन धर्म के धर्मपुस्तक गीता पर अनेक बदलाव किये गए जिसमे उसके भगवान की पहचान को छुपाया गया है जिससे की लोगों की दुर्गति शुरू हो गयी। यदि गीता में भगवान का असल परिचय दिया होता तो कोई भी दूसरे धर्म वाले भारत के मंदिरों को नहीं लुटते और भारत को अपना तीर्थस्थान समझकर नमन करते। 

तो भाइयों आज इसी सच्चाई को बताने के लिए हम यह पोस्ट लिख रहे हैं , तो इसे बोहोत ही ध्यान से पढियेगा और फिर स्वयं निर्णय लीजियेगा कि क्या सच है और क्या झूठ है। 

श्री कृष्ण गीता के भगवान है या नहीं ?

वर्तमान समय में लोग यही मान के चल रहे हैं कि द्वापरयुग में श्री कृष्ण का जन्म हुवा और उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान समय को रोककर भगवतगीता का ज्ञान अर्जुन को दिया। 
जिसमे श्रीकृष्ण को अर्जुन के रथ पर दिखाया जाता है। 

लेकिन गीता के श्लोक तो कुछ और ही कहते हैं। 
सबसे पहले तो आप ये समझिये कि गीता के श्लोक गीत (कविता ) की तरह है जिसमे अलंकारित भाषा का प्रयोग किया गया है। 

जैसे - आजकल के गीत होते हैं - मैं चाँद को ले आऊंगा तेरे लिए। 
तो क्या वह सच में चाँद को लाने की बात कर रहा है या फिर इसका अर्थ है कि वह उसके लिए कुछ भी कर गुजर जायेगा। तो ऐसे ही होते हैं अलंकारित भाषा। 
जिसका सही विश्लेषण केवल कवि ही दे सकता है। 

लेकिन कवि व्यास जी तो संस्कृत में सभी श्लोक लिख करके चले गए , लेकिन उनके जाने के बाद अलग -अलग ऋषि-मुनि अपने -अपने तरीकों से उसे समझाना चालू कर दिए। 

माध्वाचार्य की गीता कहती है - आत्मा अलग है और भगवान अलग है। आत्माएं अनेक हैं और परमात्मा एक है। 
वहीँ  शंकराचार्य की गीता कहती है - हरेक आत्मा में परमात्मा है , मैं भी ब्रह्म तुम भी ब्रह्म। आत्मा सो परमात्मा कह देती है। 

अब इसमें सच्चाई क्या है ये तो केवल कवि ही दे सकता है या फिर स्वयं भगवान ही दे सकते हैं। 
लेकिन द्वापरयुग के अंत तक तो गीता पूरी तरह बदल जाती है सैकड़ों (100 ) ऋषि और पंडित अपना-अपना गीता लेकर बैठ जाते हैं और फिर गीता के भगवान की अस्तित्व पूरी तरह से मिट जाती है। 

और इसीलिए कलियुग आने पर सबसे अधिक दुर्गति भारतवासियों की होती है क्योंकि वह अपने भगवान को ही भूल जाते है और अन्य देवी-देवताओं को अपना भगवान मानकर उनके मत पर चलने लगते हैं। 

भगवतगीता के श्लोकों में कहीं भी श्रीकृष्ण का नाम नहीं आया है , वहाँ पर है भगवानुवाच। 
श्री क्रिश्नोवाच नहीं है। यानि गीता का ज्ञान देने वाला स्वयं भगवान है। 

लोग श्रीकृष्ण को भगवान मानते हैं लेकिन श्री कृष्ण (देवता ) हैं अन्य 33 करोड़ देवताओं की तरह वहीँ भगवान देवी -देवताओं से अलग है। जो की स्वयं गीता के श्लोक साबित करते हैं। 

गीता के श्लोक क्या कहते हैं - गीता के भगवान के बारे में। 

10 /2  न में विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।
         अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः।।

अर्थ - मेरे उत्कृष्ठ जन्म को न देवगण न महान ऋषिजन ही जानते हैं , क्योंकि देवताओं और महर्षियों का सब प्रकार से आदि मैं ही हूँ।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि द्वापरयुग में जिन ऋषियों ने भगवतगीता के अलग-अलग अर्थ निकाले हैं उनमे से कोई भी भगवान के सही परिचय को नहीं जानते हैं। इसका मतलब यह है कि जो वे गीता में श्री कृष्ण को भगवान कहते हैं वो भी गलत हो जाता है।  }

9 /25  यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
        भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजीनोपि माम्।। .

अर्थ :- देवताओं के भक्त देवताओं को पाते हैं ,पितृभक्त पितरों (माँ -बाप ) को पाते हैं, भूतों के पुजारी भूतों को पाते हैं और मेरे में यजन करने वाला मेरे को ही पाते हैं।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि देवी-देवता अलग है और भगवान अलग है। }




तो फिर प्रश्न यह उठता है कि भगवान कौन है ? उनका असली परिचय क्या है ?
उसके लिए आगे के post को पढ़ते रहे :-

9 /4  मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
       मतस्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।

अर्थ - मेरे अव्यक्त (निराकारी) स्वरुप द्वारा यह सारा जगत विस्तृत हुवा है।
अतः सभी प्राणी मुझमे स्थित हैं परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि भगवान का रूप अव्यक्त है ( जिसे देखा ना जा सके -निराकार ) और वह सभी जगह नहीं है , सभी के अंदर नहीं है। जिस तरह नीम के बीज की कड़वाहट पुरे वृक्ष में होती है परन्तु पुरे वृक्ष में बीज नहीं होते , उसी तरह सभी प्राणियों के अंदर भगवान नहीं होते लेकिन भगवान की याद होती है। }




10 /3  यो मामजमनादिम च वेत्ति लोकमहेस्वरम।
        असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।। .

अर्थ - जो ज्ञानी मुझको अजन्मा ,अनादि और तीनों लोकों का महान ईश्वर जानता है , वह महुष्यों में मोहरहित हुआ सब पापों से मुक्त हो जाता है।

{ इस श्लोक से हमें यह पता चल जाता है कि भगवान अजन्मा और अनादि हैं ,यानि वो कभी भी गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। }

लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब वे गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं तो फिर कैसे जन्म लेते हैं?

4 /6  अजोपि सन्नव्ययात्मा भूतानीमीश्वरोपि सन।
        प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया।।

अर्थ - अक्षय अर्थात जिस आत्मा की शक्ति का कभी व्यय न हो , वह मैं अजन्मा होते हुवे भी प्राणियों का शासनकर्ता होते हुवे भी , अपने स्वभाव का आधार लेकर आत्मशक्ति से प्रगट /प्रत्यक्ष होता हूँ।

4 /9   जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
        त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोर्जुन।।.

अर्थ - हे सद्भाग्य का अर्जन करने वाले अर्जुन ! इस प्रकार मेरे दिव्य जन्म और कार्यों को जो सत्य रूप में जान लेता है , वह शरीर को त्यागकर फिर से ( दुःख की दुनिया में ) जन्म नहीं लेता , मुझको प्राप्त होता है।

{ इन श्लोकों से यह पता चल जाता है कि भगवान दिव्य जन्म लेते हैं। इसके लिए गीता में एक शब्द आया है प्रवेष्टुं यानि वे प्रवेश करते हैं और प्रवेश करके अपना कार्य करते हैं।  }

उदाहरण - जैसे महाभारत की लड़ाई के समय भगवान को अर्जुन के रथ में दिखाते हैं -

 यहां कोई घोडा गाडी रथ की बात नहीं हो रही है बल्कि यहां अर्जुन का शरीर ही रथ है और शरीर की इन्द्रियां घोड़े है और उसी शरीर ( रथ ) में भगवान दिव्य प्रवेश करते हैं और अपना कार्य करते हैं।
और इस प्रकार भगवान  का दिव्य जन्म होता है।

जैसे - आज कल के भूत-प्रेत प्रवेश करते हैं और कहते हैं मैं काली हूँ मैं दुर्गा हूँ , वैसे ही भगवान भी प्रवेश करते हैं लेकिन भूत-प्रेत की प्रवेशता में और भगवान की प्रवेशता में बोहोत फर्क होता है।

ये भी जाने :-



लेकिन अब प्रश्न यह है कि वे कब अपना दिव्य जन्म लेते हैं और क्यों ?


4 /7  यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
        अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।

4 /8 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
      धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।.

अर्थ :- हे भारतवंशी ! जब-जब धर्म की ग्लानि और अधर्म की वृद्धि होती है ,तब मैं स्वयं जन्म लेता हूँ।
साधु संतों की  रक्षा के लिए ,दुराचारियों के विनाश के लिए और धर्म की सम्पूर्ण स्थापना के लिए मैं जन्म लेता हूँ।

{ यहां पर साफ़-साफ़ बताया गया है कि जब धर्म की ग्लानि होती है , और अधर्म की वृद्धि होती है तब मैं आता हूँ, तो अब आप ही बताइये कि क्या सतयुग और त्रेत्रायुग में अनेक धर्म होते हैं ?
 नहीं होते सिर्फ सनातन धर्म ही होता हैं।  अनेक धर्म अभी कलियुग के अंत समय में होते हैं और अभी ही अधर्म की वृद्धि होती है।

आज देखने में भी आता है कि धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ते हैं , मारा-मारी , खून -खराबा अभी सबसे ज्यादा  होती है। पैसे के आगे सभी अपना सर झुका लेते हैं और अपने धर्म को भूल जाते हैं।
अभी ही वह स्थिति है जब साधु (ईंमानदार -सच्चे ) लोगों को दबाया/मार दिया जाता है , जिससे की भ्रस्टाचार की दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होते जाती है।

क्या आपको नहीं लगता है कि अभी भगवान को आने की सबसे ज्यादा जरूरत है जब प्रकृति और मनुष्य की मानसिकता सबसे निचले स्तर पर है।

13 /16  अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितं।
           भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।।

अर्थ :- वह परमपिता अखंड अर्थात अविभाज्य है (एक हैं ), फिर भी प्राणियों में विभक्त हुवा सा रहता है (याद के द्वारा ) और इस प्रकार प्राणियों का भरण-पोषण करने वाला विष्णु ,विनाशकर्ता शंकर और उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा माना जाता है।

{ इस श्लोक से यह पता चल जाता है कि निराकार भगवान जब इस धरती पर आते हैं तो अपने 3 मूर्तियों (ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर ) के द्वारा  स्थापना ,विनाश और पालना का कार्य करते हैं। }

और यदि आप भगवतगीता को मानते हैं और उसमे लिखे श्लोकों का अध्यन करते हैं तो अभी तक के post से आप समझ गए होंगे कि भगवान का असल स्वरुप क्या है और वह कैसे जन्म लेते हैं और जन्म ले करके क्या करते हैं।

आप इस बात को भी जरूर मानेंगे कि सृष्टि को परिवर्तन करने का कार्य और एक सत्य आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना का कार्य अभी स्वयं निराकार भगवान के द्वारा चल रहा है और वही निराकार भगवान , गीता के भगवान भी हैं।

इसकी अधिक जानकारी के लिए आगे के पोस्ट को पढ़ते रहें।




ब्रह्माकुमार /कुमारी के अनुसार गीता क्या है ?

वह निराकार शिव भगवान, ब्रह्मा के द्वारा स्थापना का कार्य करते हैं , और जिसके लिए वे उनमे प्रवेश होके गीता का ज्ञान देते हैं और इसी ज्ञान को गीता का ज्ञान कहा जाता है। जिसे मुरली भी कहते हैं।

यह ज्ञान स्वयं सिद्ध करता है कि सिवाय भगवान के ऐसा अद्भुत ज्ञान कोई दे नहीं सकता जिसमे सृष्टि के आदि मध्य और अंत का ज्ञान है।

तो असल में यही गीता है , वो वेद व्यास की गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्यों की और ही दुर्गति होते आई है , उनके अर्थ को किसी ने सही से समझाया नहीं है अभी स्वयं भगवान उनके अर्थों को समझा रहे हैं। और अपना परिचय दे रहे हैं क्योंकि बिना भगवान के कोई भी भगवान का परिचय नहीं दे सकता , वह स्वयं ही आकर अपना परिचय देते हैं , ब्रह्मा के शरीर के द्वारा .

कौन है गीता का भगवान ? गीता का भगवान कैसे सिद्ध होगा ?



गीता क्या है , भगवान अलग है और देवी-देवता अलग है ,भगवान निराकार हैं और गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। वे भी प्रवेश करते हैं जैसे भूत-प्रेत प्रवेश करते हैं।  उनके जन्म को दिव्य जन्म कहा जाता है।
वे तब आते हैं जब दुनिया में अनेक धर्म हो जाते हैं और धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ते /झगड़ते रहते हैं ,और सच्चे लोगों को दबाया/मार दिया जाता है, भ्रस्टाचार की अति हो जाती है।

आकरके सबसे पहले ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म की स्थापना का कार्य करते हैं फिर शंकर द्वारा अधर्मियों का विनाश करते हैं फिर बाद में विष्णु द्वारा संगमयुगी सतयुग में पालना करते हैं।

और इस प्रकार यह साबित हो जाता है कि गीता का भगवान वास्तव में भगवान शिव निराकार है . जो प्रवेश करके सारा कार्य करते हैं .

यदि यह बात दूसरे धर्म के लोग जानते कि गीता का भगवान भी वही भगवान/अल्लाह /खुदा /GOD  है जिसको हम मानते हैं तो फिर कभी कोई दूसरे धर्म के लोग भारत पर आक्रमण नहीं करते और ना ही मंदिरों को लूट करके ले जाते और ना कभी कोई धर्म परिवर्तन होता। 

तो भाइयों ये थी जानकारी गीता के भगवान के बारे में। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि इससे सम्बंधित आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।

और इस post को अपने दोस्तों तक , facebbok ,watsapp में share करें ताकि और लोगों तक सच्चाई पहुंच सके ।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत -बोहोत धन्यवाद। 

Aatma Kya Hai और Mann Kya Hai ?

Aatma Kya Hai और Mann Kya Hai ?

नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे आत्मा और मन के बारे में।
जैसे -

आत्मा क्या है ?
आत्मा कैसी दिखती है ?
आत्मा का घर कहाँ है ?
आत्मा को क्या पसंद है ?

शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ?
मनुष्य आत्मा कितनी जन्म लेती है ?
आत्मा में कितनी शक्तियां है ?

मन  क्या है ?
मन का काम क्या है ?
मन को  क्या पसंद है ?
मन को एकाग्र कैसे करते हैं ?
क्या मन और आत्मा एक ही है ?

और भी बोहोत कुछ आत्मा और मन के बारे में।

aatma kya hai mann kya hai
aatma kya hai mann kya hai
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आत्मा क्या है ?

शरीर अलग है और आत्मा अलग है। शरीर मांस-पेसियों से बनता है वहीँ आत्मा अजर अमर है , यानि कभी बनता ही नहीं है और ना ही कभी ख़त्म होता है। वहीँ शरीर बनता भी है और ख़त्म भी होता है।

आत्मा एक चैतन्य शक्ति है। एक ऊर्जा है। जिस तरह मोबाइल में battery एक ऊर्जा है वैसे ही शरीर में आत्मा एक ऊर्जा है। आत्मा के ऊर्जा से ही शरीर चलता है।

आत्मा शरीर को चलाने वाली है , जिस तरह गाडी को चलाने के लिए driver की जरूरत होती है वैसे ही यह शरीर (गाड़ी ) को चलाने के लिए आत्मा (driver ) की जरूरत होती है।
जैसे -
आत्मा कहती है शरीर को कि school जाव तो शरीर school जाता है।
आत्मा कहती है शरीर को कि पढ़ाई करो तो शरीर पढता है।
बिना आत्मा के आदेश के शरीर कुछ नहीं कर सकता है।


आत्मा कैसी दिखती है ?

आत्मा बोहोत छोटी प्रकाशित बिंदु जैसी है।(bright light point )

aatma kaisa dikhta hai.

हम आत्मा को अपने आँखों से नहीं देख पाते , लेकिन अनुभव करते हैं कि हमारे अंदर आत्मा है।

जैसे छोटे -छोटे कीटाणु को हम अपने आँखों से नहीं देख पाते लेकिन जब microscope से देखते हैं तो दिख जाते हैं।

वैसे ही हम आत्मा को अपने आँखों से नहीं देख पाते सिर्फ अनुभव करते हैं लेकिन ज्ञान की आँखों से हम उसे देख सकते हैं। कहने का मतलब है कि जब हम आत्मा के बारे में पूरी जानकारी जान जायेंगे तो हमें उसकी अनुभूति और अधिक होने लगेगी , दूसरों को भी हम आत्मा की तरह ही देखने लगेंगे।

आत्मा का घर कहाँ है ?

आत्मा का घर परमधाम है। जिसे अंग्रेज soul world , मुसलमान अर्श कहते हैं।
आकाश तत्व से परे आत्माओं का घर है , जहां सभी आत्माएं रहती है। वहीँ से आत्माएं इस धरती पर आकर शरीर के द्वारा अपना part निभाती है या कहें अपना जीवन जीती है।

आत्मा के घर के बारे में और तीनो लोकों के बारे में मैंने नीचे के post में विस्तार से बताया है आप पढ़ सकते हैं :-


Aatma को Kya Pasand Hai ?

आत्मा को शांति और पवित्रता पसंद है।

हरेक आत्मा पहले शांति चाहती है , जिस तरह कोई बुखार से बीमार हो और उसे लडू -मिठाई खाने को दीजिये तो क्या वह खाना पसंद करेगा ?
नहीं पसंद करेगा , पहले वह बुखार से ठीक होना चाहेगा फिर मिठाई इत्यादि खायेगा।

वैसे ही अनेक तरह के सुखों को पाने से पहले आत्मा शांति चाहती है , उसे कोई परेशान ना करे।   ना शरीर की बीमारी ,ना मन की बीमारी और ना ही पैसों की बीमारी (कमी )।

शांति से बाद आत्मा को पवित्रता पसंद है - तन से भी पवित्र और मन से भी पवित्र।
ऐसा इसलिए क्यूंकि जब आत्मा अपवित्र बनती है तो आत्मा की शक्ति कम होते जाती है। जिसके साथ-साथ शरीर को भी कमजोरी महसूस होने लगती है।

अपवित्र बनना यानि विकार में जाना , भ्रस्ट इन्द्रियों का आचरण करना।
 आत्मा तो चाहती है कि वह अतीन्द्रिय सुख भोगे ,मन बुद्धि का सुख भोगे। जिससे आत्मा powerful बने और शरीर भी powerful बने।

मन बुद्धि के सुख के बारे में अधिक जानने के लिए आप ये post पढ़े :-



शरीर में Aatma कहाँ रहती है ?

आत्मा शरीर का राजा है , जिसतरह राजा का सिंघासन सबसे ऊपर होता है वैसे ही आत्मा भी  शरीर के सभी इन्द्रियों के ऊपर रहती है , जिसे उत्तमांग कहते हैं।

आँख के ऊपर दोनों भोरों के बिच में , जहां सभी बिंदी और टिका लगाते हैं।

sharir me aatma kaha rahta hai.


दरहसल भगवतगीता में है कि भोरों के मध्य में प्राण रुपी आत्मा निवास करती है उसपर टिकने से मनुष्य श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है तो लोग टिका और बिंदी लगाना शुरू कर दिए।

असल में आत्मा जो बिंदी की तरह है उसे उस स्थान में समझते रहने की बात है , जिससे की आत्मा की चेतना जाग सके और हम अतीन्द्रिय सुख प्राप्त कर सके।


मनुष्य आत्मा कितनी जन्म लेती है ?

सबसे पहले आप ये समझिये कि मनुष्य आत्मा केवल मनुष्य में ही जन्म लेती है और पशु पक्षी इत्यादि जीवों में जन्म नहीं लेती है।
जिस तरह आम का बीज रोपने से उसपर आम ही फल होंगे।
वैसे ही आत्मा एक बीज है , और वह बीज जिस जीव की होगी वह उसी जीव में हमेशा जन्म लेगी।

 गाय की बीज होगी और चीटी  में जन्म लेगी तो अपने पिछले जन्मों का हिसाब-किताब कैसे चुक्तु करेगी।
तो अन्य जीवों में जन्म लेना ये प्रकृति के विरुद्ध हो जाता है।

अब बात करते हैं मनुष्य आत्मा कितने जन्म लेती है ? 

मनुष्य आत्मा ज्यादा से ज्यादा 84 जन्म लेती है। और कम से कम 1 जन्म लेती है।
जो इस सृष्टि में परमधाम से पहले आती है वो ज्यादा जन्म लेती है और जो बाद में आती है वो कम जन्म लेती है।

शास्त्रों के अनुसार - शास्त्रों में 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है ऐसा कहा जाता है।

लेकिन यदि आत्मा 84 लाख जन्म लेगी तो कभी अपने जन्मो को जान ही नहीं पायेगी।
Proof - इसका proof भी है , दुनिया में ऐसे भी लोग हुवे हैं जिनको अपने पिछले जन्म की याददास्त आई है और वह सच भी साबित हुयी है और उनमे से किसी ने ये नहीं बताया की मैं पिछले जन्म में कुत्ता था या बेल था।
सभी ने बताया कि मैं पिछले जन्म में मनुष्य ही था।

इसकी अधिक जानकारी के लिए आप ये post पढ़े।




आत्मा में कितनी शक्तियां है ?

आत्मा में 3 शक्तियां है।

मन , बुद्धि और संस्कार।

मन - मन का काम है सोचना।
बुद्धि - बुद्धि का काम है निर्णय (decision ) लेना।
संस्कार - गुणों को धारण करना।

तो हरेक आत्मा में ये 3 शक्तियां होती है। जिसे हरेक आत्मा अपने अनुसार इस्तेमाल करती है।

मन क्या है ?

मन एक आत्मा की शक्ति है। जिसका काम है सोचना और इन्द्रियों को चलाना।
मन हरेक second कुछ ना कुछ सोचता ही रहता है। जब आप सोते हैं तब भी मन कुछ ना कुछ सोचता है जिसे हम स्वप्न कहते हैं।

हरेक दिन एक मनुष्य का मन हज़ारों चीजें सोचता है , और मन जितने अधिक चीजों के बारे में सोचता है उतना ही ज्यादा अशांत होता है।

वहीँ मन का दूसरा काम है इन्द्रियों को चलाना।
हम अकसर कहते हैं , आज मन हो रहा है गोलगप्पे खाने का ,आज मन हो रहा है cinema देखना का ,आज मन हो रहा है घूमने का।

तो इन्द्रियों से जितनी भी सुख भोगने की चाहत होती है वह सब मन की होती है। मन ही इन्द्रियों की सुख में मनुष्य को फसाये रखता है जिससे की मनुष्य कभी आत्मा का सुख नहीं प्राप्त कर पाता।

तो ये थी जानकारी मन के बारे में और उसके काम के बारे में।

मन को क्या पसंद है ?

जैसा की मैंने बताया कि मन इन्द्रियों से सुख भोगता है , उसमे भी मन श्रेष्ठ इन्द्रियों के सुख को ज्यादा भोगने की कोशिश करता है।
जैसे - अच्छे-अच्छे दृश्य देखना , अच्छे जगह में घूमना।
सुन्दर खुसबू , मधुर गीत , उत्तम भोजन ये सभी मन को लुभाती है।

बाकि भ्रस्ट इन्द्रियों के सुख को मन तब भोगना पसंद करता है जब मन अधिक चंचल हो जाता है।
चंचलता के कारन ही मन का पतन होता है , जिससे की वह अशांत हो जाता है फिर उसका किसी भी कार्य में ध्यान नहीं लगता है।

जब मन श्रेष्ठ इन्द्रियों (आँख ,कान मुख इत्यादि ) का सुख भोगता है तो उसे सुख अनुभव होता है।
वहीँ जब भ्रस्ट इन्द्रियों (मल -मूत्र इन्द्रियां ) का सुख भोगता है तो उसे दुःख महसूस होता है।

मन को एकाग्र कैसे करते हैं। 

जैसा की मैंने बताया कि मन की चंचलता के कारन ही मन अशांत हो जाता है और फिर उसे किसी भी कार्य में दिल नहीं लगता है।
ऐसी परिस्थिति में मन बुरे संकल्प सोचने लगता है और फिर शरीर द्वारा बुरा करना चाहता है।

तो ऐसे समय मन अपने आप कुछ नहीं कर सकती। जो मन का स्वामी है आत्मा, उसे ही मन को समझाना होता है , बुद्धि मन तो सही राह दिखाती है और मन को सही राह में चलने को कहती है।
फिर जब मन को सही और गलत का ज्ञान हो जाता है तो फिर वह अच्छे संकल्प करने लगती है और फिर मन शांत हो जाता है।

इसीलिए मन को एकाग्र करने के लिए सही और गलत का ज्ञान होना जरूरी है।
उसमे भी आत्मा का ज्ञान होना जरूरी है।

फिर बाद में ध्यान द्वारा अच्छे संकल्प ला सकते हैं , लेकिन पहले ज्ञान की जरूरत है।


क्या मन और आत्मा एक ही हैं ?

अब तक के post से आप समझ ही गए होंगे कि मन अलग है और आत्मा अलग है।
मन आत्मा की ही एक शक्ति है जो सोचती है और शरीर के इन्द्रियों को चलाती है।

वहीँ आत्मा मन का स्वामी है। मन को सही राह दिखाना यह आत्मा का काम है।

तो मेरे भाइयों ये थी जानकारी आत्मा और मन के बारे में। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आयी होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। 
अधिक सहायता के लिए मुझसे बात करें - 9931472457 


और इसे जरूर और लोगों तक share करें ताकि ये ज्ञान सबतक पहुँच सके।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत बोहोत धन्यवाद।

Manushya Jeevan Ka Lakshya Kya Hai

Manushya Jeevan Ka Lakshya Kya Hai


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जिनेंगे कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ? हम धरती पर किस लिए जन्म लिए है ,हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ? हमें किस तरह का जीवन जीना चाहिए और भी बोहोत कुछ मनुष्य जीवन के लक्ष्य के बारे में।

जैसे-
मन और बुद्धि की उच्चतम अवस्था/ सुख कौन सा है ?
अतीन्द्रिय सुख , रूहानी नशा क्या है ?
मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्राप्त होने पर कैसी-कैसी शक्तियां प्राप्त होगी।
भगवतगीता के अनुसार -मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?
उदाहरण -जिन्होंने मनुष्य जीवन का लक्ष्य पूरा किया ?

तो इस post में आगे बने रहिये और जानते रहिये मनुष्य जीवन के लक्ष्य के बारे में।

manushya jeevan ka lakshya kya hai
manushya jeevan ka lakshya kya hai
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मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?

मनुष्य जीवन के बारे में हम सभी जानते हैं क्यूंकि हम सभी मनुष्य है। मनुष्य उसे कहते हैं जिसमे मन और बुद्धि होती है। जिसमे मन और बुद्धि नहीं है तो वो मनुष्य भी नहीं है , वह पशु के समान है।

यही मन और बुद्धि की उच्चतम अवस्था ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है।

जैसे - किसी व्यक्ति का डॉक्टर बनने का लक्ष्य है , और वह पढ़ाई करके डॉक्टर बन जाता है। और फिर डॉक्टर का काम करता है। अपने जीवन में ढेरों मरीजों का इलाज करता है , फिर उसका नाम होता है , पैसे कमाता है ,दुनिया उसको सम्मान देती है और फिर एक दिन वह दुनिया से चला जाता है।

तो मैं आपसे पूछता हूँ , कि क्या इसे मनुष्य जीवन का लक्ष्य कहेंगे ?

आपका जवाब होगा नहीं। इसे मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं कहेंगे क्यूंकि उन्होंने जो डॉक्टर की पढ़ाई पढ़ी वो पढ़ाई उसके शरीर से सम्बंधित थी , जो पैसे उन्होंने कमाए वो उसके शरीर में खर्च हुवे ,जो मान मर्तबा उसको मिला वो उसके शरीर को मिला। उस पढ़ाई से उसके मन का कोई भी विकाश नहीं हो रहा था।

तो क्या scientists को कहें क्यूंकि वे अपने पुरे मन और बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं।
उन्हें भी मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं कह सकते हैं।

आसान भाषा में समझिये ,

मन और बुद्धि की उच्चतम अवस्था/ सुख कौन सा है ?

ऐसी अवस्था जब आपको अपने मन और बुद्धि का सुख अनुभव हो रहा हो।
ऐसी अवस्था जब आपको किसी व्यक्ति पर ,किसी वस्तु पर , किसी कार्य पर , अपने सुख के लिए आधीन ना रहना पड़े।

इसे अतीन्द्रिय सुख कहते हैं , जो इन्द्रियों से परे का सुख है। इसमें मन और बुद्धि अपने शरीर के सुख से ऊपर पहुँच जाती है और मन का सुख अनुभव करती है।

इस अवस्था में मनुष्य देवता के समान बन जाता है ,उसके अंदर के 5 विकार (काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहंकार ) ख़त्म हो जाते हैं। उसे 24 घंटे रूहानी नशा अनुभव होता है , ऐसा लगता है कि जैसे हमेशा मन और बुद्धि से ऊर्जा निकल रही हो और उसके दिल में समा रही हो।

(जैसे आजकल के लोगों को पैसे का नशा होता है ,पढ़ने का नशा होता है , खेलने का नशा होता है इत्यादि अनेक नशा होते हैं जिसमे लोग डूबे रहते हैं )

वैसे ही यह है रूहानी नशा , यह नशा सबसे बड़ा नशा होता है जिसमे रूहानियत से पूरा शरीर तेज़वान हो जाता है। लोग स्वतः ही उनके तरफ आकर्षित होने लगते हैं , ऐसे लोग अपना सभी कार्य योगबल से करते हैं।

यह अतीन्द्रिय सुख या रूहानी नशा कब अनुभव होता है ? इसके लिए आगे के post को पढ़ते रहे.....

मनुष्य जीवन का लक्ष्य - अतीन्द्रिय सुख , रूहानी नशा।

मनुष्य से देवता किये करत ना लागी वार।
 मनुष्य जीवन के उच्चतम लक्ष्य को पाने के लिए आपको शरीर से कोई भी मेहनत नहीं करनी है। यह मन और बुद्धि की बात है , अपने अंदर के भावना को जगाने की बात है , सबके प्रति कल्याण का भाव , दुवा का भाव उजागर करने की बात है।

अतीन्द्रिय सुख तभी महसूस होगी , जब आप अपने शरीर को भूल जायेंगे और अपने को आत्मा (रूह ) समझने लगेंगे। जब आत्मा की चेतना जागेगी तो स्वयं आत्मा अपने शक्तियों से पुरे शरीर को कंचन -काया ( जिसे कुछ न हो ) बना देगी।

तो आपको इसके लिए स्वयं को आत्मा समझने की कोशिश करनी है , शरीर को भूलकर , बिंदु आत्मा (जैसे आकाश में stars होते हैं ) वैसे ही अपने को आत्मा समझना है। इससे आत्मा अपने स्वरुप को पहचानेगी और उसकी चेतना जागेगी और उन्हें रूहानी नशा का अनुभव होगा।

aatmik sthiti.



यह अभ्यास करते-करते जब आत्मा की पूरी चेतना जाग जाएगी या कहें वह पूरा ही आत्मा अभिमानी हो जायेगा तो फिर उसको कहेंगे कि उनका मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्राप्त हुवा।
लेकिन इसका अभ्यास केवल बैठ करके नहीं करना है बल्कि जीवन के हर कार्य को करते हुवे अपने को आत्मा समझ करके करना है .

ये भी जाने :-


मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्राप्त होने पर कैसी-कैसी शक्तियां प्राप्त होगी।

सबसे पहली शक्ति जो प्राप्त होगी  , वह अपने मन के संकल्पों को नियंत्रण कर पायेगा।
मन के संकल्पों के ऊपर नियंत्रण होने से उसकी बुद्धि की विशालता बोहोत बढ़ जाएगी। जिससे की वह दूसरे आत्माओं के vibration को पकड़ पायेगा।
बुद्धि की ऐसी विशालता हो जाएगी कि दूर बैठे किसी व्यक्ति से कार्य कराना चाहे तो वह करा पायेगा।

वह जहां भी जायेगा तो उसकी रूहानी पावर से वहाँ  की भुखमरी ,आकाल ,रोग ख़त्म हो जायेंगे या कहें कि वह प्रकृति को कण्ट्रोल करने वाला बन जायेगा।
वह मनुष्य के रूप में देवता बन जायेगा , जैसे देवतायें आत्मा अभिमानी और प्रकृतिजीत होते हैं तो वो भी बन जायेगा।
और यही है मनुष्य जीवन का लक्ष्य।

भगवतगीता के अनुसार -मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?

जब अर्जुन , भगवान से पूछता है कि है भगवन आप मुझे मेरा मार्ग बताइये कि मैं क्यों इस धरती में जन्म लिया हूँ ?
तब भगवन उनको बताते हैं कि है नर अर्जुन , तू ऐसा कर्म कर कि नर से नारायण बन जा और है नारी द्रोपदी तू ऐसी करनी कर कि नारी से लक्ष्मी बन जा।

तो भगवतगीता के अनुसार , भगवन अर्जुन को नारायण के समान 16 कला सम्पूर्ण बनने को कह रहे हैं।
सिर्फ देवता नहीं , बल्कि देवताओं में जो सबसे उत्तम देवता नारायण जिसकी शास्त्रों में कोई ग्लानि नहीं है और (33 करोड़ सभी देवताओं की ग्लानि है लेकिन नारायण की कोई ग्लानि नहीं है )

तो ऐसा ही देवता बनना यह भगवन अर्जुन को बनने के लिए कहते हैं।

अर्जुन - यहां पर अर्जुन कोई एक नहीं है बल्कि अर्जुन उसे कहते हैं तो रूहानी ज्ञान का अर्जन करते हैं।
तो यह भगवतगीता का ज्ञान सभी रूहानी लोगों के लिए है , इससे कोई भी मनुष्य देवता बन सकता है।

उदाहरण -जिन्होंने मनुष्य जीवन का लक्ष्य पूरा किया ?

आज हम 33 करोड़ देवताओं के बारे में जानते हैं जो मनुष्य से देवता बने हैं। तो कभी तो बने होंगे , किसी ने तो उन्हें बनाया होगा।
कब बनाया होगा ? और कैसे बनाया होगा ये मैं आपको अपने  अगले post में बताऊंगा कि
मनुष्य से देवता कैसे बने ?


तो दोस्तों आज के लिए इतना ही मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।
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अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत -बोहोत धन्यवाद।

HTML Kya Hai? HTML Ki Puri Jankari Hindi Me

HTML Kya Hai? HTML Ki Puri Jankari Hindi Me

नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे HTML के बारे में।
  • HTML क्या है ?
  • HTML का full form क्या होता है ?
  • HTML में Tags क्या होते हैं ? Example of tags
  • HTML में Elements और Attributes क्या होते हैं ?
  • HTML में किन-किन software द्वारा web pages बना सकते हैं ?
  • HTML में web pages कैसे बनाते हैं ?

html ki jankari hindi me
html ki jankari hindi me
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HTML Ka Full Form Kya Hota Hai?

HyperText Markup Language (HTML)

HTML Kya Hai?

इसके full form से आप समझ गए होंगे कि HTML एक भाषा है जिसे web pages बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

Example :- जब भी internet आप चलाते हैं , चाहे facebook या google, तो उनमे जो जानकारी दी जाती है वह page में दी जाती है और उस page की बनावट HTML के द्वारा होती है।

Web pages को बनाने के लिए HTML "Tags " का इस्तेमाल करती है। इन tags की मदद से कोई भी व्यक्ति web pages बना सकता है। और उसे internet में upload कर सकता है , और ऐसे ही websites बनते हैं।

HTML में मुख्य 3 चीजों को जानना है :-
Tags , Attributes और Elements


HTML Me Tags Kya Hote Hai?

Tags को instruction या codes कह सकते हैं। Web Browser ( Chrome ) इन्हीं codes के द्वारा web pages को screen में show करती है।

Example of Tags :-

<i >                italic            </i >
opening tag  content   closing tag

Result : Italic 

<html >......... </html> 
[हरेक web page के सुरुवात में <html > और अंत में </html > का प्रयोग होता है। इन दोनों tags के बिच में ही अन्य tags का काम होता है।  ]

<head>...........</head> 
[   इसमें web page का heading दिया जाता है। इसे page header भी कहते हैं। ]

<title >........ ..</title >
[ यह web pages  के title देने में प्रयोग होता है। यह <head> ..... </head > के अंदर प्रयोग होता है। ]

<body>..........</body>  
[ इस tag के अंदर सभी documents तैयार होते है , या कहें सभी कार्य होते हैं। ]

<p>.........</p>
[नया paragraph बनाने में प्रयोग होता है। ]

<b>........</b>
[ text को bold करने के काम में प्रयोग होता है। ]

<u>........</u>
[ underline देने में प्रयोग होता है। ]

<hr>.......</hr>
[ सीधी line देने में काम आता है ]

<br>
[ linebreak , एक लाइन की दुरी बढ़ाने में प्रयोग होता है। ]

<centre>...........</centre>
[ text को center में लाने में प्रयोग होता है ]

<table>............</table>
[ Webpage में table बनाने में प्रयोग होता है। जिसमे row <td >... </td>  द्वारा और column <tr >.... </tr>   द्वारा बनाये जाते हैं। ]

<style>...........</style>
[ Links या style sheet बनाने में प्रयोग होता है। ]

<img scr = "........." >
[Image add करने में प्रयोग होता है। ]

हरेक Tags का अपना-अपना काम होता है जिसे bracket के द्वारा बताया गया है , यह tags, web pages बनाने में काम आती हैं।


HTML Me Attributes aur Elements Kya Hote Hai ?

Attributes:-
यह ऊपर दिए Tags में ही काम आते हैं। जब tags के style में  size ,shape, colour इत्यादि को change करना हो या जोड़ना हो तब इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

Attributes को opening tag में ही दिया जाता है। 

जैसे ;- 
<hr width = "500 " >
यहां पर width को 500 px करने के कहा जा रहा है। 

<hr color = "red " >
यहां पर लाल रंग add करने को कहा जा रहा है , और ऐसे ही attributes का इस्तेमाल होता है। 

Elements :- 

जब  Opening Tag , Content और Closing Tag  तीनों आपस में हो तो उन्हें Elements कहते हैं। Element के अंदर ही Attributes आते हैं।  

जैसे :- 

<i >                italic            </i >
opening tag  content   closing tag
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
                 Element 

Result : Italic 

Example with attributes :-

<i color = " red ">       italic      </i >
Result : Italic 

HTML Se Web Pages Kis Software Se Banaye

HTML द्वारा web pages बनाने के लिए आप Notepad (windows ) का इस्तेमाल कर सकते हैं। या फिर किसी अन्य text editor का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

आजकल लोग HTML द्वारा web pages बनाने के लिए GUI का इस्तेमाल करते हैं। 
ये GUI Editors, automatically HTML codes को generate करती है जिससे की लोग आसानी से web pages बना लेते हैं जिससे codes के ऊपर ध्यान नहीं देना पड़ता है। 

Ex GUI :- Microsoft's  Front Page , Adobe 's  Dream Weaver 

लेकिन मैं आपको सलाह दूंगा कि पहले आप Notepad में इन codes के द्वारा web pages बनाये फिर बाद में GUI का इस्तेमाल करें। 
इससे बाद में जब कहीं दिक्कत आएगी तो आसानी से आप उसे solve कर पाएंगे। 





HTML Dwara Web Pages Kaise Banaye

यहां पर उदाहरण के द्वारा बताया गया है कि कैसे HTML के द्वारा web pages बनाया जाता है। 

Step 1 :- Notepad पर जाये और नीचे दिए गए codes को type करें। 

Step 2 :- 

<html >
<head>
<title> My first html web page </title>
</head>
<body>
My world
</body>
</html>

Step 3 :-

इसे save करें। save करते समय end में .html से save करें। 
जैसे myfirstpage.html 
इसी तरह pages को save करें। 

Step 4:- 

फिर इसे open करें , जहां save किये थे वहाँ से। 
Result कुछ इस तरह show होगा।

html webpage
html webpage
.
इसी तरह आप html की मदद  से अपना web pages बना सकते हैं जिसमें आप images ,audio , video ,tables ,background इत्यादि जैसे चीजें भी add कर सकते हैं। 

Note :- 
यह post html के basic knowledge के लिए है , इसकी अधिक जानकारी के लिए दिए गए websites पर जाकर सिख सकते हैं। 




तो दोस्तों यह थी html के बारे में जानकारी। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। 

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अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 
HTTP Kya Hai? HTTP Ki Puri Jankari

HTTP Kya Hai? HTTP Ki Puri Jankari


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे कि http क्या होता है ? इसका क्या काम होता है ? http  का इस्तेमाल हम कैसे करते हैं ? Internet में http का क्या काम होता है ? http कैसे webpages को transfer करता है ? और भी अन्य जानकारियां http के बारे में।

यह सभी जानकारियां बोहोत ही सरल हिंदी भाषा में बताया गया है इसीलिए आपको समझने में जरा सी भी मुस्किल नहीं होगी।

http kya hai
http kya hai
.
 HTTP का full form क्या होता है ?

HyperText Transfer Protocol 

HTTP का क्या काम होता है ?

इसके full form से ही पता चल जाता है कि यह Protocol को transfer करता है। 
Protocol :- इसका अर्थ होता है नियम। http का यह protocol, code के रूप में होता है , जिसे की http पहचानता है कि यह सही code है या नहीं फिर उसे transfer करता है। 

Example of Protocol :- ऐसा protocol जो web के लिए काम में आता हो ,या जिसे web के लिए बनाया गया हो। 
जैसे - TCP/IP , HTTP ,SMTP, DNS

HTTP और Internet (World Wide Web ) में क्या सम्बन्ध है ?

आप Internet तो चलाते ही होंगे , उसमे जो pages होते हैं ,चाहे facebook का page हो या google का , वह http based pages होते हैं। 

Internet से सम्बन्ध-
Internet दरहसल web pages का भंडार है ,जो की दुनियाभर में दूसरे -दूसरे computer server में store है। कहीं text के रूप में तो कहीं audio -video के रूप में। 

HTTP का मुख्य मकसद है इन्हीं webpages को एक computer (server ) से दूसरे computer (client ) में transfer करना। 

Ex :- जैसे हमारे दुनिया में अलग -अलग सामानों के लिए अलग-अलग दुकानें हैं ,books के लिए book store ,sweets के लिए sweet store . वैसे ही Internet में सारी चीजें है। HTTP क्या करता है ,जिस चीज की हमें जरूरत होती है ,वह पहले देखता है कि यह किस दुकान (server ) में है ,और फिर उसे ढूंढकर हमारे पास (client ) के पास लाता है। 

और इस प्रकार http और internet में सम्बन्ध है। 

HTTP  कौन से  web pages को transfer कर सकता है ?

ऐसा web page जिसमें link हो जिसे (hypertext ) कहते हैं। 
HTTP बोहोत variety के web pages transfer कर सकता है , जिसमे text ,images ,audio ,video web pages सामिल है। 

HTTP का इस्तेमाल हम कैसे करते हैं ?

हम यानि ग्राहक client ,हम web browser की मदद से http का इस्तेमाल करते हैं। 
web browser ही दरहसल web client यानि ग्राहक है। वही web server यानि दूकान से हमारे लिए चीजें ढूंढकर लाती है। 

Web browser http protocol का इस्तेमाल करती है ,जिससे की हम web server से चीजें ला पाते हैं। 
यानि दोनों , web browser और web server same http protocol (नियम ) का इस्तेमाल करती है। तभी लेन-देन हो पाता है। 

Web browser जैसे - Chrome ,Mozilla Firefox इत्यादि। 

Example :-मान लीजिये कि हमें खीर बनाना नहीं आता और हमें उसकी recipe चाहिए तो हम सबसे पहले Google Chrome खोलते हैं ,उसमे type करते हैं -खीर बनाने की रेसिपी , और फिर पेज open होता है जिसमें कई सारे links आ जाते हैं खीर बनाने के ऊपर। 

तो हम जो लिखें chrome में वह http में change हो गया , और फिर http अपने server में ढूंढकर हमें result दे दिया। और इस प्रकार हम http का इस्तेमाल करते हैं। 

Note :- जिस तरह ग्राहक अनेक और दूकान कम होते हैं ,वैसे ही web client (chrome ) हरेक के मोबाइल में होता है और web server (website) बोहोत कम होते हैं। 

Web Client =Web Browser =ग्राहक 
Web Server =Web Site =दूकान।


तो दोस्तों यह थी जानकारी HTTP के बारे में कि कैसे http काम करती है और हम कैसे इसकी मदद से घर बैठे फायदा उठा पाते हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आयी होगी। 

यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। इस post को अपने दोस्तों में share करें , इसे watsapp ,facebook में भी share करें। 

अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 

Shivratri Kyu Manaya Jata Hai-महत्व और सिख

Shivratri Kyu Manaya Jata Hai-महत्व और सिख


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे कि शिवरात्रि कब और क्यों मनाया जाता है ? शिवरात्रि का मतलब क्या होता है ? शिव -रात्रि में ही क्यों आते हैं ? शिवरात्रि में क्या-क्या शिव को चढ़ाते है और क्यों ? शिवरात्रि का हमारे जीवन में क्या महत्व है ? शिवरात्रि से हमें क्या सिख मिलती है ? और अंत में हम ये भी जानेंगे कि शिवरात्रि में हम क्या करें जिससे हमें अधिक प्राप्ति हो।

तो इस post को अंत तक पढ़े आपको बोहोत कुछ नया जानने को मिलेगा।

शिवरात्रि कब मनाया जाता है?

शिवरात्रि हरेक साल फाल्गुन महीने में -हिंदी कैलेंडर के अनुसार साल के अंतिम महीने में (Feb -Mar ) कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है। पूर्णिमा और अमावश्या के बिच के समय को कृष्ण पक्ष कहा जाता है जिसकी शुरुवात पूर्णिमा के अगले दिन से होती है।

शिवरात्रि में क्या-क्या शिवलिंग को चढ़ाते हैं और क्यों ?

शिवरात्रि में हम शिवलिंग को गांजा -भांग -धतूरा -अकवंद जैसी समाज की नशीली चीजें चढ़ाते हैं। इसका मतलब लोगों में जितनी भी बुरी आदतें हैं उनको भगवान को दे देना और समाज के लोगों को निरोगी रखना है। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव सभी के पाप कर्म को हर लेते हैं इसकी यादगार में समुद्र मंथन में शिव को विश्व कल्याण के लिए विष पीते भी दिखाते हैं।

यदि कोई सच्चे मन से भक्तिभाव से अपनी बुरी आदतों को भगवान को अर्पण करता है तो वे उनके बुरी आदतों को खुद ले लेते हैं और उन्हें सुख शांति प्रदान करते हैं।

शिवरात्रि में हम दूध ,गंगा जल ,बेलपत्ता भी चढ़ाते हैं जो समाज के उन्नति बनाये रखने और जीवन को सुखमय जीने पर चढ़ाते हैं।

shivratri kyu manaya jata hai
shivratri kyu manaya jata hai


शिवरात्रि का मतलब क्या होता है?

शिवरात्रि कहें या शिवजयंती कहें दोनों बातें एक ही है। जिस तरह लोग अपना जन्मदिवस मनाते हैं वैसे ही भगवान शिव की इस कलियुग रुपी रात्रि में दिव्य जन्म लेने को ही शिवरात्रि कहा जाता है।

लोग अपना जन्मदिन मनाते हैं लेकिन भगवान शिव अपना जन्मरात्रि क्यों मनाते हैं ?

ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव रात्रि में जन्म लेते हैं। कोई हद के रात्रि में नहीं बल्कि अज्ञान अन्धकार रुपी रात्रि में आते हैं। जब सभी भगवान को भूल जाते हैं और 5 विकारों रुपी दलदल में फँस जाते हैं।

हरेक लोगों में 5 विकार :- काम -क्रोध -लोभ -मोह -अहंकार ये 5 विकार पूरी तरह बढ़ जाती है , लोगों में कोई गुण नहीं रहते अथवा लोग कलाहीन हो जाते हैं। तब ऐसी अंधकार रुपी रात्रि में भगवान शिव अवतरित होते हैं इसलिए उनके जन्म को शिवरात्रि कहा जाता है।

शिवरात्रि क्यों मनाया जाता है?

शिव रात्रि में आया किसी ने देखा ? नहीं देखा। तो फिर पता कैसे पड़ता है कि भगवान शिव इस कलियुग रुपी रात्रि में आया ?
जरूर किसी में तो प्रवेश करेगा क्योंकि भगवान शिव तो है निराकार। उनका अपना कोई शरीर नहीं।

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गीता में भी बोला है प्रवेष्टुं :- तो वो भगवान शिव ऊंच ते ऊंच है तो जरूर ऊंच ते ऊंच में प्रवेश करेगा।
जानवर में तो प्रवेश नहीं करेंगे। जानवर में प्रवेश करेंगे तो ज्ञान कैसे सुनाएंगे , तो किसमें आया ?
गाया भी जाता है भागीरथ -वो भाग्यशाली रथ में ही प्रवेश किया , तो जरूर रथ मनुष्य का होगा ना।

परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा में प्रवेश करके नई दुनिया की स्थापना का कार्य करते हैं इसलिए कहा जाता है ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की स्थापना।

जब सभी धर्मपिता अपना-अपना कार्य करके चले जाते हैं फिर भी यह सृष्टि नहीं सुधरती तब परमपिता को ही इस सृष्टि पर आना पड़ता है। जिसे सभी धर्म वाले मानते हैं :- कोई उसे खुदा कहता है ,तो कोई Godfather ,कोई उसे सद्गुरु कहता है तो कोई शिव भगवान।

भगवान आएगा तो जरूर पुरानी सृष्टि को नया बनाएगा और भगवान शिव के सिवाय कोई भी धर्मपिता या मनुष्य इस पुरानी सृष्टि को नई सृष्टि नहीं बना सकता। पुरानी सृष्टि को नया बनाना ये भगवान का ही काम है।

तो इसलिए भगवान पुरानी सृष्टि कलियुग का विनाश कर देते हैं। विनाश करेंगे तो किसके द्वारा करेंगे -जिसके नाम में ही बम-बम है। हर-हर बम-बम। शंकर। तो शिव , शंकर द्वारा विनाश का कार्य करते हैं।

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शिवरात्रि का महत्व क्या है?

इस शिवरात्रि के समय की बोहोत भारी महत्व है। यह वह समय है जब हम भगवान शिव से प्राप्ति कर सकते हैं। इस समय यदि कोई चाहे तो पुरे 84 जन्मों के लिए सुख और शांति का वर्षा प्राप्त कर सकता है।

इस समय शिवबाबा को याद करने से आत्मा के 5 विकार ख़त्म हो  जाते हैं और आत्मा पावन बन जाती है। आत्मा में जो पिछले जन्मों का पाप कर्म है वो भी कट जाता है।

इस समय को हीरे तुल्य कहा गया है - इस समय भगवान साकार में आकर मिलते हैं। सतयुग की इतनी महिमा नहीं है जितनी महिमा इस शिवरात्रि के समय की है।

इसे ज्ञानी लोग :- संगमयुग के नाम से जानते हैं।
यानि कलियुग और सतयुग के मिलने का समय। इसी समय की सारी महिमा है। इसी समय कोई चाहे तो मनुष्य से देवता पद प्राप्त कर सकता है।

इसी शिवरात्रि के समय भगवान शिव ,भक्ति का फल "ज्ञान " अपने भक्तों को देने आते हैं। जिस ज्ञान से वे भगवान को पहचान पाते हैं।
और इस प्रकार यह शिवरात्रि का समय बहुमूल्य और हीरेतुल्य है।

शिवरात्रि से क्या सिख मिलती है?

शिवरात्रि से हमें यह सिख मिलती है कि अज्ञान अंधकार के बाद ज्ञान सोझरा जरूर होता है। अज्ञानता और पाप  की जब अति हो जाती है तो उसका अंत भी हो जाता है।
पाप कर्म करने वालों को उसका परिणाम जरूर मिलता है और पुण्य कर्म करने वालों को उसका फल भी जरूर मिलता है।

इसीलिए जब सारी दुनिया दलदल में जा रही हो तो हमें भी दलदल में ना जाते हुवे किनारा कर लेना चाहिए और उस सत्य राह की तलाश करनी चाहिए जो हमें 5 विकारों के दलदल से बाहर निकाल सके।

तो भाइयों ये थी जानकारी शिवरात्रि के बारे में। शिवरात्रि क्यों मनाया जाता है ,उसका महत्व -सिख और कुछ अन्य जानकारी। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आई होगी।


यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद।